Coronavirus: भारत सरकार का आरोग्य सेतु एप कितना है सुरक्षित, जानें यहां


कोरोना वायरस संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए घरों में जिन लोगों को क्वारंटीन किया गया है उन पर अब सरकार नज़र रखने के लिए तकनीक का सहारा ले रही है। 

इसके साथ ही तकनीक के ज़रिए ही कोरोना संक्रमित लोगों के मूवमेंट पर भी नज़र रखी जा रही है। 

भारत सरकार ने गुरुवार को 'आरोग्य सेतु' ऐप लॉन्च किया है। 

इसके ज़रिए लोग अपने आसपास कोरोना के मरीज़ों के बारे में भी जानकारी हासिल कर सकते हैं। 

सरकार की ओर से जारी नोटिफिकेशन में यह भी कहा गया है कि ये ऐप यूजर्स की निजता को ध्यान में रखकर बनाया गया है। 

पंजाब, तमिलनाडु, कर्नाटक और गोवा की सरकारों ने ऐसे मोबाइल ऐप शुरू किए हैं जिनके ज़रिए कोरोना वायरस कोविड 19 से संबंधित जानकारियां हासिल की जा सकती हैं।

 साथ ही ये भी कहा जा रहा है कि इन ऐप के ज़रिए कोरोना संक्रमित लोगों और होम क्वारंटीन पर रखे गए लोगों पर नज़र रखी जा रही है।



ऐसी ख़बरें भी हैं कि भारत सरकार कोरोना कवच नाम का ऐप लाने की तैयारी कर रही है, जो कोरोना संक्रमितों पर नज़र रखेगा। 

इसके अलावा राज्य सरकारें टेलिकॉम कंपनियों की मदद से कोरोना संक्रमित व्यक्तियों की लोकेशन और कॉल हिस्ट्री के जरिए कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग भी कर रही हैं।


कोरोना मुक्त हिमाचल का नारा

समाचार एजेंसी एएनआई के मुताबिक़, भारत में हिमाचल प्रदेश सरकार कोरोना मुक्त हिमाचल ऐप लॉन्च करने की तैयारी में है। 

जबकि आंध्र प्रदेश सरकार ने कोरोना एलर्ट ट्रेसिंग सिस्टम का इस्तेमाल शुरू कर दिया है। 

इसके ज़रिए क़रीब 25000 लोगों पर नज़र रखी जा रही है जो होम क्वारंटीन पर रखे गए हैं। 

प्रशासन इन लोगों के मोबाइल नंबरों के आधार पर डेटाबेस भी निकाल रहा है ताकि इनके संपर्क में आने वालों की तलाश की जा सके। 

ऐसे क़दम सिर्फ़ भारत में ही नहीं दुनिया के कई देशों में उठाए जा रहे हैं।


इस्राइल में रातोंरात पास हुआ कानून

इस्राइल सरकार ने कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने और कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग के लिए लोगों के मोबाइल डाटा पर नज़र रखना शुरू कर दिया है। 

इसके लिए सरकार ने रातोंरात एक अस्थाई कानून भी पास कर दिया है। 

कहा जा रहा है कि इससे उन लोगों की तलाश करने में आसानी होगी जो संक्रमित व्यक्तियों के संपर्क में आए हैं। 

इस्राइल के अलावा, चीन, दक्षिण कोरिया, अमरीका, सिंगापुर, हॉन्ग कॉन्ग में भी सरकारें ऐसे कदम उठा रही हैं। 

हालांकि दुनिया भर में साइबर एक्सपर्ट इस कदम पर सवाल उठा रहे हैं और इसे लोगों की निजता का हनन बता रहे हैं।


डाटा के इस्तेमाल पर सवाल

विशेषज्ञों का मानना है कि कोरोना वायरस जैसी महामारी की आपात स्थिति से निपटने के लिए भले ही सरकार का यह क़दम एक हद तक सही लग रहा हो लेकिन अगर लोगों की निजता की बात की जाए और जो जानकारी सरकार इकट्ठा कर रही है उसका इस्तेमाल कब तक होगा और कैसे होगा इसे लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं है जो कि चिंता का विषय है। 

साइबर क़ानून एक्सपर्ट पवन दुग्गल कहते हैं कि ये इलेक्ट्रॉनिक सर्विलांस के ज़रिए इकट्ठा किया जा रहा डाटा जब इस्तेमाल किया जाएगा तो निजता के अधिकार का हनन तो होगा ही साथ ही सुप्रीम कोर्ट के आदेश का भी उल्लंघन होगा जिसमें निजता के अधिकार को संवैधानिक अधिकार बताया गया है।




वो कहते हैं, "सरकार यह कह सकती है कि ट्रेसिंग जनस्वास्थ्य को ध्यान में रखकर की जा रही है क्योंकि कम्युनिटी ट्रांसमिशन का खतरा बढ़ रहा है इसलिए कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग ज़रूरी है। 

लेकिन सरकार ऐसी कोई गारंटी नहीं दे रही कि हालात सुधरने के बाद इस डाटा को नष्ट कर दिया जाएगा। ऐसे में इस बात की पूरी संभावना बनती है कि इस डाटा का ग़लत इस्तेमाल हो सकता है।


न्यू वर्ल्ड साइबर ऑर्डर

पवन दुग्गल यह भी कहते हैं कि कोरोना वायरस संक्रमण की वजह से लोग डरे हुए हैं इसलिए फिलहाल वो निजता के हनन का मुद्दा नहीं उठा रहे हैं. 

इस वजह से भारत ही नहीं दुनिया भर में शासकों को ऐसी ताकत मिल रही है जो आगे चलकर जनता के ख़िलाफ़ इस्तेमाल हो सकती है और उसके परिणाम बुरे हो सकते हैं। 

उन्होंने कहा, "पूरी दुनिया के परिवेश में देखें तो एक नया वर्ल्ड साइबर ऑर्डर आ रहा है जहां पर सरकारें अपनी शक्तियों को और ज़्यादा मजबूत कर रही हैं और इस महामारी के आधार पर लोगों के अधिकारों के उल्लंघन का लाइसेंस ले रही हैं। 

लोग ये नहीं समझ रहे हैं कि ये महामारी सिर्फ़ इंसानों को ख़त्म नहीं करेगी, जब हालात सामान्य होंगे तो लोगों को पता चलेगा कि उनकी जानकारियों का दुरुपयोग हो रहा है।



वो मानते हैं कि लोगों को इसके प्रति जागरूक होना पड़ेगा और अगर उन्हें इस महामारी के ख़त्म होने बाद कानूनी रास्ते भी अपनाने पड़ सकते हैं ताकि वो अपनी निजता और डिजिटल स्वतंत्रता को बचा सकें.

क्योंकि ये ट्रेंड दुनिया के कई देशों में है। 

इंटरनेट फ्रीडम फ़ाउंडेशन के एग्जिक्युटिव डायरेक्टर अपार गुप्ता भी इस बात से सहमत नज़र आते हैं। 

अपार गुप्ता कहते हैं कि इससे जो नुकसान हो सकते हैं उनमें सबसे प्रमुख है कि ये डेटा जो सरकार ले रही है वो बिना किसी क़ानून के दायरे में ले रही है ऐसे में इसका इस्तेमाल वो कैसे करती है और कब तक करती है किसी को नहीं पता।


आधार नंबर की तरह हो सकती है ट्रेसिंग

आधार कार्ड से जुड़ी जानकारियों को लेकर भी लंबे समय तक बहस छिड़ी थी और मामला सुप्रीम कोर्ट तक भी गया था। 

कई मौकों पर ऐसी ख़बरें भी आईं कि आधार कार्ड का डाटा लीक हो गया और हज़ारों लोगों की निज़ी जानकारी सार्वजनिक हो गई या किसी ऐसी पार्टी के पास पहुंच गई जो उसका ग़लत इस्तेमाल कर सकती है।

आधार कार्ड को राशन और दूसरी सरकारी सुविधाओं को भ्रष्टाचार मुक्त बनाने के उद्देश्य से लॉन्च किया गया था। 

लेकिन बाद में सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में बताया कि आधार को बैंक ख़ातों और पैन कार्ड से जोड़कर टैक्स की चोरी और मनी लॉन्ड्रिंग को रोकने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। 

आधार कार्ड को मोबाइल नंबर के लिए ज़रूरी कर दिया गया।


डाटा और निजी जानकारी

अपार गुप्ता कहते हैं कि जिस तरह आधार नंबर एक सर्विलांस सिस्टम बन गया है और उसे हर चीज़ से जोड़ा जा रहा है वैसे ही कोरोना वायरस से जुड़े एप्लिकेशन में लोगों का डाटा लिया जा रहा है, उनका हेल्थ डेटा और निजी जानकारियां भी शामिल हैं वो सरकार किस तरह और कब तक इस्तेमाल करती है इसकी कोई गारंटी नहीं है। 

उन्होंने कहा, "कर्नाटक सरकार ने ये तक आदेश दिए हैं कि लोग हर घंटे अपनी सेल्फ़ी खींचकर भेजें, जो कि उनकी निजता का हनन है। 

सरकार कोरोना का संकट दूर करने के उद्देश्य से यह कर रही है वो ठीक है लेकिन क्या वाकई ऐसे एप्लिकेशन की ज़रूरत है?

 क्या इसके लिए कोई क़ानून है ये बड़ा सवाल है।


अधिकतर राज्य सरकारों ने कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग के उद्देश्य से यह शुरू किया है लेकिन इसकी कोई समय सीमा तय नहीं की गई है। 

अपार गुप्ता बताते हैं, "अगर आप एंड्रॉयड प्लेस्टोर पर जाएं और प्राइवेसी पॉलिसी का जो लिंक है उस पर क्लिक करें तो पाएंगे कि ये प्राइवेसी पॉलिसी के पेज़ पर नहीं खुलता। 

ये किसी अधूरे पेज़ पर खुलता है या किसी दूसरे सरकारी विभाग की वेबसाइट पर खुलता है। 

कर्नाटक सरकार के कोरोना ऐप में दिए गए प्राइवेसी लिंक पर क्लिक करें तो वो लैंड रिकॉर्ड डिपार्टमेंट की वेबसाइट पर ले जाता है. 

प्राइवेसी पॉलिसी भी सरकार नहीं रख रही और न ही ये बता रही कि वो हमारा कितना डेटा लेगी और कब तक लेगी. 

और सबसे बड़ी बात है कि सरकार ये डेटा किसे देगी और कौन उन पर नज़र रखेगा. इससे बाद में काफ़ी संकट आ सकता है।


आरोग्य सेतु की प्राइवेसी पॉलिसी क्या है

केंद्र सरकार की ओर से जारी नोटिफिकेशन के मुताबिक, ये एप पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप के ज़रिए तैयार किया गया है ताकि देश के लोगों को कोरोना के खिलाफ लड़ाई में एकजुट किया जा सके। 

यह एप लोगों को कोरोना वायरस संक्रमण से बचाने के उद्देश्य से बनाया गया है। 

जिस व्यक्ति के फ़ोन में ये एप होगा वो दूसरों के संपर्क में कितना रहे हैं, यह पता लगाने के लिए ब्लूटूथ तकनीक, एल्गोरिदम और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का भी इस्तेमाल किया जा रहा है।

अगर आपके फोन में ये एप इंस्टॉल है तो ये अपने आस-पास के उन लोगों को भी खोज लेगा जो आपके आसपास रहते हैं और उनके फ़ोन में भी ये एप है. 

ये एप बताएगा कि आपके आसपास रहने वाला कोई भी व्यक्ति अगर कोरोना वायरस से संक्रमित है तो आपको कितना ख़तरा है और जीपीएस लोकेशन की मदद से वो यह भी पता लगाएगा कि आप कब उनके संपर्क में आए हैं। 

एप की मदद से सरकार आइसोलेशन और वायरस संक्रमण फैलने से रोकने के लिए ज़रूरी कदम भी वक्त रहते उठा पाएगी। ये ऐप 11 भाषाओं में उपलब्ध है।




सरकार की ओर से जारी नोटिफिकेशन में यह भी कहा गया है कि ऐप में नाम, मोबाइल नंबर, जेंडर, पेशा, ट्रैवेल हिस्ट्री और आप धूम्रपान करते हैं या नहीं, ये ब्यौरा पूछा जाएगा। 

एप में मौजूद आपकी निजी जानकारी और डेटा का इस्तेमाल भारत सरकार करेगी ताकि कोरोना से संबंधित डेटाबेस तैयार किया जा सके और वायरस संक्रमण को फैलने से रोका जा सके। 

सभी जानकारी क्लाउड में अपलोड की जाएगी और इसके जरिए आपको लगातार कोरोना वायरस से संबंधित सूचनाएं भी दी जाएंगी।




मोबाइल नंबर पर सरकार की ओर से मैसेज और दूसरे माध्यमों से जानकारी दी जाती रहेगी। 

किसी भी तरह की जानकारी का इस्तेमाल कोरोना वायरस की महामारी से निपटने के अलावा किसी अन्य वजह से इस्तेमाल नहीं किया जाएगा। 
अगर आप एप डिलीट करते हैं तो 30 दिनों के भीतर आपका डाटा क्लाउड से हटा दिया जाएगा।


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